बिलासपुर से एक और डरावनी ख़बर…
शहर में अब खबर बनाने वाले पत्रकार भी सुरक्षित नहीं हैं, और उनके घर भी अब ‘प्रेस’ के बोर्ड से नहीं बचते।

शेखर गुप्ता, दैनिक भास्कर में फोटो जर्नलिस्ट हैं। शुक्रवार की रात ऑफिस से लौटे थे। घर के बाहर देखा – शराब की बोतलें, नशे में चूर कुछ युवक, गाड़ी के बोनट को बार काउंटर समझ बैठे थे।

पत्रकार के घर में घुसा गुंडाराज – पिता-पुत्र पर जानलेवा हमला
पत्रकार के घर में घुसा गुंडाराज – पिता-पुत्र पर जानलेवा हमला

शेखर ने टोका – “भाई, ये घर है, शराबखाना नहीं।”
और बस इतना कहना था कि मोहल्ले के बदमाशों का गुस्सा फूट पड़ा – गाली दी, धमकाया और फिर शेखर घर में चले गए। लेकिन ये कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

अब हम बात करते हैं उस क्षण की, जो कानून-व्यवस्था को तमाचा मारता है।
वो युवक शेखर के पीछे-पीछे घर में घुस गए… पत्रकार को पीटा गया, और जब उनके बुजुर्ग पिता अशोक गुप्ता बीच-बचाव करने आए, तो उन्हें भी नहीं छोड़ा गया। पिता-पुत्र दोनों को बुरी तरह पीटा गया।

अस्पताल का नाम है सिम्स – जहां इन दोनों की हालत गंभीर बनी हुई है।
अब सोचिए – खबर बनाने वाला जब अस्पताल में हो, तो खबर कौन बनाएगा?

एसएसपी रजनेश सिंह ने तुरंत टीआई को अस्पताल भेजा, और कहा – “सख़्त कार्रवाई करो।”
पर सवाल ये है – क्या सिर्फ निर्देश देने से अपराध कम हो जाएंगे? क्या गुंडों को ये डर होगा कि अगली बार ऐसा करेंगे तो जेल जाएंगे?

पांच आरोपी पकड़े गए हैं – शुभम सोनी, राहुल गुप्ता और उनके साथी। मगर मोहल्ले की ये गुंडागर्दी क्या पहली बार हुई है? शायद नहीं।

ये घटना सिर्फ मारपीट की नहीं है – ये उस व्यवस्था पर हमला है, जो पत्रकारों को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहती है, लेकिन जब उन पर हमला होता है तो काग़ज़ी कार्रवाई से ज्यादा कुछ नहीं करती।

शराब, गुंडागर्दी और सत्ता – जब तीनों का गठजोड़ मोहल्ले तक पहुंच जाए, तो घर भी सुरक्षित नहीं रहते। और फिर हम सोचते हैं – “कब आएगा रामराज्य?”
लेकिन यहां तो ‘शराबराज’ चल रहा है… और पुलिस सिर्फ एफआईआर लिख रही है।

कभी-कभी लगता है, पत्रकार होना अब रिपोर्टिंग नहीं, रिस्क लेने का काम हो गया है।