सरगुजा के सिलसिला गांव से एक दर्दनाक कहानी आई है। कहानी दो मासूम बच्चों की, जो खेलते-खेलते उस गड्ढे में समा गए, जिसे कभी विकास का गवाह बताया जाता है – ट्यूबवेल का सोखता गड्ढा।
सिर्फ पांच साल की उम्र में सूरज और जुगनू नाम के दो बच्चों ने दुनिया को अलविदा कह दिया। मगर दुखद यह है कि मौत के बाद भी सिस्टम ने इन्हें चैन से विदा नहीं होने दिया।
परिजन पोस्टमॉर्टम के लिए पहुंचे रघुनाथपुर हॉस्पिटल – मगर वहां उन्हें कहा गया, “अगर आज पोस्टमॉर्टम कराना है, तो 10-10 हजार दो।”
जी हां, आरोप डॉक्टर पर है। परिजन कहते हैं – डॉक्टर अमन जायसवाल ने यह राशि मांगी। और जब शव वाहन की बात आई, तो वो भी नहीं मिला।
बाइक पर बच्चे का शव…
सोचिए, एक पिता अपने मृत बेटे को बाइक पर ले जा रहा है… और व्यवस्था कहती है – “वाहन मंगाया जा रहा है, थोड़ा इंतज़ार करिए।” मगर दर्द में डूबे पिता को इंतज़ार मंज़ूर नहीं था। वो चल पड़ा, बेटे को लिए, बिना किसी एंबुलेंस के।
प्रशासन की सफाई तैयार थी:
बीएमओ डॉक्टर राघवेंद्र चौबे कहते हैं – किसी ने डॉक्टर से पैसे मांगने की बात नहीं की। यह सब बिचौलिये की कारस्तानी है। अब सवाल उठता है – ये बिचौलिये कौन हैं? अस्पतालों में कहां से आते हैं ये दलाल, जो मौत पर मोलभाव करते हैं?
यह सिर्फ एक खबर नहीं है, यह उस व्यवस्था का आईना है, जो मासूमों की मौत पर भी चुप रह जाती है, और फिर बयान जारी कर देती है – “हमने कुछ नहीं किया।”
सरकार, सिस्टम और समाज – तीनों को सोचना होगा, कि क्या वाकई एक गरीब बाप के आंसुओं की कोई कीमत नहीं? या फिर मौत के बाद भी गरीब को ही सबसे लंबी लाइन में खड़ा रहना पड़ेगा?
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