बिलासपुर की रातों में इन दिनों अंधेरा महज मौसम का हिस्सा नहीं रहा, यह एक प्रशासनिक असफलता का स्थायी अंधकार बन चुका है।
जिस शहर को स्मार्ट कहा जा रहा था, वहां के मोहल्ले मोमबत्ती की रोशनी में रोष लिख रहे हैं।

जब बिजली गुल हुई तो जनता पहुंची विधायक निवास
जब बिजली गुल हुई तो जनता पहुंची विधायक निवास

बिजली गई नहीं… छीनी गई है

बुधवार की रात, शिवम विहार, सरकंडा, मंगला, सकरी, महामाया विहार जैसे मोहल्लों में लोग बिजली के बिना सोए नहीं — जगे रहे, परेशान रहे।
और जब सहन नहीं हुआ, तो लोग पहुँच गए विधायक अमर अग्रवाल के दरवाज़े पर।

विधायक निवास कोई चौकी नहीं होता, लेकिन बिलासपुर की जनता ने साफ कर दिया —
जब सिस्टम अंधेरे में हो, तो उजाले की तलाश कहीं तो करनी ही पड़ेगी।


“आंधी नहीं, बारिश नहीं… फिर बिजली क्यों नहीं?”

बिजली विभाग के पास जवाब नहीं, सिर्फ बहाने हैं।
सरकंडा में ओवरलोड का रोना, महामाया विहार में 24 दिनों से अनसुनी शिकायतें,
और सकरी में कॉलोनियों की अंधेरी रातें —
ये सब मिलकर एक सवाल बनते हैं — क्या बिलासपुर अब भी नगरी कहलाने लायक है?


निगम ऑफिस घेराव — कांग्रेस का गुस्सा, जनता की आवाज़

बुधवार दोपहर, कांग्रेस ने नगर निगम का घेराव किया।
मुद्दा था — पानी और बिजली।
लोगों का कहना था कि 70 वार्डों में से एक तिहाई भीषण जल संकट झेल रहे हैं।
नल से पानी नहीं आता, बिजली से मोटर नहीं चलती, और ऊपर से सुनवाई नहीं होती।

यह सिर्फ मूलभूत सुविधा की बात नहीं है, ये नागरिक गरिमा की लड़ाई है।


अफसर गायब, फोन बिजी और कॉलोनियों में बेचैनी

बिजली ऑफिस में फोन बजता है, कोई उठाता नहीं।
अगर किस्मत से उठ गया, तो जवाब मिलता है — “काम चल रहा है, देख रहे हैं…”
ये ‘काम चल रहा है’ दरअसल सिस्टम की नींद है।


देर रात विधायक निवास पहुंचे लोग, फिर भी समाधान अधूरा

लोग जब विधायक अमर अग्रवाल के घर पहुंचे तो वो नहीं मिले।
प्रतिनिधि दस्तगीर भाभा ने फोन उठाया, अधिकारियों से बात की।
लेकिन जनता वहीं डटी रही — क्योंकि उन्हें चाहिए थी बिजली, न कि सिर्फ आश्वासन।


सवाल ये है कि ये शहर है या इंतज़ार की कोई लंबी सुरंग?

क्या सरकारी सिस्टम इतने अंधेरे में है कि उसे खुद पता नहीं चल रहा कि लाइट कब गई और क्यों नहीं आई?

बिजली गुल होना अब तकनीकी गलती नहीं, सामाजिक क्रूरता बन चुकी है।


आखिर में…

“बिलासपुर की जनता वोट देती है, टैक्स भरती है, नियम मानती है…
क्या वो सिर्फ गर्मी में पसीना बहाने और शिकायतें दर्ज कराने के लिए है?”

यह सवाल आज विधायक निवास की सीढ़ियों पर, निगम दफ्तर की दीवारों पर, और हर मोहल्ले के अंधेरे कमरे में गूंज रहा है।

कभी जनता सरकार के दफ्तरों तक जाती थी, अब वो जनता के घरों तक जाए — यही नया सुराज होगा।