बस्तर दशहरा की तरह ही, होली भी बस्तर में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक उत्सव माना जाता है। इस परंपरा का आरंभ सन 1408 से हुआ था और आज भी बस्तर में इसे देखा जा सकता है।
बस्तर में होली का उत्सव: परंपरागत और ऐतिहासिक
होली का प्रारंभ माडपाल गाँव में होता है, जो कि शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां होली के उत्सव में हजारों की संख्या में ग्रामीण और अन्य स्थानीय लोग एकत्रित होते हैं और होलिका का दहन करते हैं।
राजा का रथ: इस उत्सव का प्रमुख आकर्षण होता है राजा का रथ। गाँव के लोग इस रथ को ग्रामीण पूरी आस्था से खींचते हैं और माँ दंतेश्वरी और माँ मावली की पूजा अर्चना कर होलिका का दहन करते हैं।
परंपरा का महत्त्व: बस्तर के महाराजा और उनके लाव लश्कर भी इस उत्सव में भाग लेते हैं और रथारूढ़ होकर गाँव की परिक्रमा कराते हैं। इसके बाद होलिका दहन के बाद बस्तर में होली का उत्सव मनाया जाता है।
ऐतिहासिक दास्तान: कहा जाता है कि जब बस्तर के महाराजा को रथपति की उपाधि मिली तो उन्होंने अपने लाव लश्कर के साथ इस गाँव में पहुँचा था। उस समय गाँव में विपदा भी आई थी, तब बस्तर राजा पुरुषोत्तम देव ने मां दंतेश्वरी और मां मावली का आव्हान किया था और मां ने होलिका दहन करने को कहा था।