“सर, मैं बैंक से बोल रहा हूं… आपके खाते की KYC अपडेट नहीं है, तुरंत ओटीपी बताइए…”
अगर ऐसा कॉल आए तो समझ लीजिए – मोबाइल पर कोई अफसर नहीं, शिकारी बैठा है – और शिकार है आपका बैंक बैलेंस।
बिलासपुर के सकरी क्षेत्र से एक ऐसी ही दिल दहलाने वाली खबर आई है –
जॉनसन एक्का नामक व्यक्ति एक फ़र्ज़ी बैंक अफसर की चिकनी-चुपड़ी बातों में ऐसा फंसे कि 26 लाख 74 हजार 701 रुपये उनके खाते से उड़ गए… वो भी एक ओटीपी के बदले।
अब आप सोचिए, एक ओटीपी की कीमत – 26 लाख!
और हम सब सोचते हैं – बैंकिंग डिजिटल हो गया, अब ज़िंदगी आसान हो गई…
इस मामले में थाना रेंज साइबर की टीम ने लंबी जांच और तकनीकी जाल के बाद अंतरराज्यीय गिरोह के तीन सदस्यों को धर दबोचा है। आरोपी उड़ीसा के नक्सल प्रभावित क्षेत्र से पकड़े गए – नाम हैं क्रूश्ना लूहा, गुलेख कुम्हार और पंकज खैतान।
इनका काम क्या था?
फर्ज़ी सिम, फर्ज़ी बैंक अकाउंट और फर्ज़ी पहचान। मगर ठगी असली और मोटी रकम की।
अब आप ध्यान से सुनिए… ये ठगी हुई कैसे?
सबसे पहले कॉल आया – “मैं बैंक से बोल रहा हूं, KYC अपडेट करना है।”
बातों में उलझाकर ओटीपी ले लिया गया, और फिर उस ओटीपी से बैंक खाते से लोन निकाला गया… यानी कि बिना दस्तावेज़ दिए, बिना बैंक गए, कोई आपके नाम से लोन ले सकता है – बस एक ओटीपी से!
ठगी का नेटवर्क कितना गहरा है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि…
पुलिस को बैंक स्टेटमेंट, मोबाइल डेटा, साइबर पोर्टल रिपोर्ट और ट्रांजेक्शन ट्रेल से आरोपी तक पहुंचना पड़ा। उड़ीसा जाकर, जंगलों में घेराबंदी करके आरोपियों को पकड़ा गया।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है – हम इतने असुरक्षित क्यों हैं?
मोबाइल हमारी जेब में है, बैंकिंग हमारी उंगलियों में, लेकिन सुरक्षा? वो हवा में।
और इसलिए पुलिस ने कुछ ज़रूरी सलाह दी है – जो अब नियम बन जानी चाहिए:
- किसी अनजान कॉलर को ओटीपी, बैंक डिटेल्स न दें।
- बैंक अफसर कहे तो भी – संदेह करें।
- +92 नंबर से आए कॉल को घातक मानिए।
- शेयर मार्केट, इन्वेस्टमेंट, अश्लील चैट – इन सबके पीछे जाल है।
- पार्सल, ड्रग्स, डिजिटल अरेस्ट – यह सब स्क्रिप्टेड फ्रॉड है।
अगर ठगी हो जाए तो 1930 नंबर याद रखें। या सीधे जाएं: cybercrime.gov.in
क्योंकि अब ठगी ऑनलाइन हो रही है, लेकिन उसका दर्द बिल्कुल रीयल है…
और अगला नंबर आपका भी हो सकता है…
सावधान रहें, सतर्क रहें – क्योंकि अब ठगी सिर्फ एक क्लिक दूर है।