वर्तमान में हम लोकतंत्र का उत्सव मना रहे हैं, जिसमें लोकसभा चुनाव की बड़ी मात्रा में धन का खर्च हो रहा है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, इस बार के चुनाव में यह खर्च पिछले कई दशकों के रिकॉर्ड को भी पार कर सकता है। इसका मुख्य कारण है विभिन्न खर्चात्मक गतिविधियों में वृद्धि।
मुख्य खर्चे:
- राजनीतिक दलों और संगठनों का खर्च: राजनीतिक पार्टियों, उम्मीदवारों, सरकार, और निर्वाचन आयोग सहित सभी संबंधित व्यक्तियों और संगठनों का खर्च इस खास चुनाव में शामिल है।
- इलेक्टोरल बॉन्ड: इस संगठन के अध्यक्ष एन भास्कर राव के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड के खुलासे के बाद, प्रारंभिक खर्च के अनुमान को 1.2 लाख करोड़ रुपये से संशोधित किया गया है।
- डिजिटल प्रचार: इस बार के चुनाव में डिजिटल प्रचार का उपयोग बहुत अधिक हो रहा है। पार्टियां कॉर्पोरेट ब्रांड की तरह काम कर रही हैं और प्राेफेशनल एजेंसियों की सेवाएं ले रही हैं।
आँकड़े:
- राजनीतिक फंडिंग की पारदर्शिता में कमी: राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की कमी के मामले में कुछ संस्थाएं चिंतित हैं। इससे राजनीतिक पार्टियों को आम लोगों के समर्थन में भ्रष्टाचार की आशंका हो सकती है।
निष्कर्ष: यह चुनाव संभावित रूप से अप्रत्याशित और खर्चीला हो सकता है, और इससे राजनीतिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और लोकतंत्र के मूल्यों की भ्रष्टाचार के खिलाफ सजगता को बढ़ावा मिल सकता है।